देशहित को कुचलते ऐसे आंदोलन! __ - संजय कुमार शर्मा
राजनैतिक दल जब अपनी राजनीति भुनाने के लिए जनता को धर्म पंथ, समुदाय और जातियों में बांटकर देशहित की घोर उपेक्षा करते हैं तो यह देशहित में कदापि नहीं कहा जा सकता। अब तो आंदोलन का एक नया रूप भी सामने आ चुका है। नागरिकता संशोधन अधिनियम जो संसद द्वारा पारित है, जहां कांग्रेस और समूचे विपक्ष द्वारा इसका विरोध नित नये तरीकों से किया जा रहा है, वहीं सत्ता पक्ष इस कानून की सार्थकता और उपयोगिता पर अपने मंतव्य आम जन के सामने रख रहा है। सत्ता पक्ष को अपनी बात कहने तथा विपक्ष को सरकार की कथित लचर और कमजोर नौतियों का विरोध करने का अधिकार जनतंत्र में है। जनता के पास अपनी सुविधाओं तथा समूची व्यवस्था को बनाये रखने का अधिकार और कर्तव्य । जामिया मिलिया, जेएनयू जैसी अनेक घटनाओं ने देश के आम जन को कष्ट हो पहुंचाया है। विरोध के स्वर यदि मर्यादा में तो स्वागत योग्य हैं। किन्तु इन आंदोलनों कुछ असामाजिक तत्वों के कूद जाने के कारण जो आगजनी और तोड़फोड़ तथा मेरठ जैसे शहर में कुछ पुलिस वालों को बंद करके जलाने का प्रयास करने जैसी घटनायेंनिश्चय ही घोर कष्टदायी हैं। जेएनयू के एक छात्र जो आंदोलन जेएनयू के एक छात्र जो आंदोलन से सम्बद्ध विषय पर शोध कार्य कर रहेथे, उन्होंने कुछ समय के लिए अपने शोध से सम्बन्धित कुछ परिणाम प्राप्त करने के लिए शालीमार बाग क्षेत्र में आंदोलनकारियों के आंदोलन सम्बन्धी व्यवस्था को अंजाम दिया। किन्तु परिणाम प्राप्त हुए हों या न हुए हों, यहां ऐसा स्थायी आंदोलन बन गया जो शिक्षार्थी के शोध के विषय से दूर होकर राजनैतिक आंदोलन का रूप लेबैठा। इस प्रकार के आंदोलनों में विभिन्न गमनागमन से सम्बद्ध क्षेत्रों और जन सुविधाओं के मार्ग होने के कारण उन्हें लम्बे समय तक अवरोधित या बाधित नहीं करना जनहित को ध्यान में रखते हुए एक व्यवस्था के अनकल आता है। किन्तपिछले लगभग 39 दिनों से यह क्षेत्र बाधित है। सरकार को भी करोड़ों रुपये के राजस्व की हानि है। राजनेता रोज अपने-अपने मंतव्य देकर यहां आंदोलन को गति प्रदान कर रहे हैं। मातायें, बहनें किन परिस्थितियों में यहां बैठी हैं. यह उनका हृदय ही जानता है तथा जनता के लिए इस क्षेत्र का आंदोलनकितनी बड़ी बाधा बन चुका है इसे जनता और पीड़ित पक्षकार ही समझ सकते हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय अपना निर्णय दे चुका है, सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई है। देखना है किस प्रकार इस आंदोलन की स्थिति पर अल्प विराम या पूर्ण विराम लगता है। यहीनहीं इस प्रकार के आंदोलन देश के अन्य शहरों में भी प्रारम्भ हो चुके हैं, जो आंदोलनों की राह में नई पायदान हैं।